संसार के ख़ातिर जो त्यागे ख़ुद की इच्छा, बुद्ध वही है। संसार के ख़ातिर जो त्यागे ख़ुद की इच्छा, बुद्ध वही है।
जो छोड़ सकूँ प्रेम अपनी प्रियतमा का जो छोड़ सकूँ प्रेम अपनी प्रियतमा का
लोक कथाओं में पढा,रहस्य भरी वो बात मनुज रूप में भेडिया ,बनें पूर्णिमा रात। लोक कथाओं में पढा,रहस्य भरी वो बात मनुज रूप में भेडिया ,बनें पूर्णिमा रात।
उस हाथ से जिसमें क्षमता थी कई लोगों का भाग्य बदलने की। उस हाथ से जिसमें क्षमता थी कई लोगों का भाग्य बदलने की।
शीश झुकाए गुरु चरणों में शिष्य बनाले जीवन सार्थक। शीश झुकाए गुरु चरणों में शिष्य बनाले जीवन सार्थक।
तुम पूर्णिमा के चाँद सी, मैं अँधेरी रात सा। तुम पूर्णिमा के चाँद सी, मैं अँधेरी रात सा।